प्रधानमंत्री मोदी ने उठाया समान नागरिक संहिता का मुद्दा:
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में समान नागरिक संहिता की जरूरत को प्रमुखता से उठाया। उन्होंने इसे समय की मांग बताया और इसे लागू करने की जरूरत पर बल दिया।
इससे संकेत मिलता है कि उनकी सरकार अपने मौजूदा कार्यकाल में इस विवादास्पद मुद्दे को अखिल भारतीय स्तर पर हल करने का इरादा रखती है।
मोदी ने कहा कि मौजूदा नागरिक संहिता में भेदभावपूर्ण और सांप्रदायिक तत्व हैं, जो समाज में एकता और समानता के सिद्धांतों के खिलाफ हैं।
उनके मुताबिक संविधान और सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता की दिशा में सुधारों की जरूरत पर बार-बार जोर दिया है।
उन्होंने यह भी कहा कि सभी नागरिकों के लिए समान कानूनी मानदंड होना संविधान निर्माताओं का सपना था और इसे पूरा करना प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार का कर्तव्य है।
भाजपा ने अपने लोकसभा चुनाव घोषणापत्र में भी समान नागरिक संहिता पर गंभीरता से विचार करने की बात कही थी।
घोषणापत्र में साफ किया गया था कि समान नागरिक संहिता का मकसद भारत की विविधता में एकता सुनिश्चित करना और समाज के सभी वर्गों के लिए समान कानूनी मानदंड लागू करना है।
पार्टी ने यह भी कहा कि समान नागरिक संहिता समाज में सभी नागरिकों को समान अधिकार प्रदान करने और कानूनी प्रथाओं में पारदर्शिता लाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है।
भाजपा का मानना है कि इसके माध्यम से विभिन्न धर्मों और जातियों के बीच समानता को बढ़ावा मिलेगा और कानूनी मामलों में किसी भी तरह के भेदभाव को समाप्त किया जा सकेगा।
प्रधानमंत्री मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में इस मुद्दे को उजागर करते हुए यह भी कहा कि इस पर व्यापक चर्चा और समाज के सभी वर्गों की राय सुनने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि धार्मिक आधार पर विभाजन करने वाले कानूनों का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं है और इन कानूनों को समाप्त किया जाना चाहिए।
मोदी ने इसे समाज में समानता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए समय की मांग बताते हुए धर्मनिरपेक्ष नागरिक संहिता की आवश्यकता बताई।
भाजपा घोषणापत्र के अनुसार समान नागरिक संहिता को लागू करने का उद्देश्य कानूनी भेदभाव को समाप्त करना और सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित करना है।
भाजपा के नेतृत्व वाली राज्य सरकारों ने पहले ही इस दिशा में कदम उठाए हैं, जैसे समान नागरिक संहिता का मसौदा तैयार करना और इसकी व्यवहार्यता पर विचार करना।
इससे पता चलता है कि यह मुद्दा अब राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा और कार्यान्वयन की ओर बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान से यह भी स्पष्ट होता है कि उनकी सरकार एक स्पष्ट कानूनी ढांचा बनाने और मौजूदा विवादों को समाप्त करने के लिए प्रतिबद्ध है।
अगर समान नागरिक संहिता लागू होती है तो यह एक महत्वपूर्ण सामाजिक और कानूनी बदलाव होगा, जो विविधता में एकता को बढ़ावा देगा और धार्मिक भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम होगा।
इसके अलावा, मोदी का यह बयान इस बात को रेखांकित करता है कि समान नागरिक संहिता को लागू करने का मुद्दा न केवल कानूनी है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक बदलाव का भी हिस्सा है। यह कदम समाज में सभी नागरिकों को समान अवसर और अधिकार मिले, तथा कानूनी प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए उठाया जा सकता है।
समाज में समानता और न्याय की दिशा में उठाया गया यह कदम भारत के संवैधानिक आदर्शों और नागरिकों के अधिकारों के प्रति सरकार की जिम्मेदारी को भी उजागर करता है।
भाजपा की नीति और प्रधानमंत्री मोदी के बयानों से यह संकेत मिलता है कि समान नागरिक संहिता को लागू करना एक ऐसी प्रक्रिया है जो न केवल कानूनी बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है।
यह एक ऐसा बदलाव है जो देश की विविधता में एकता को मजबूत करेगा और विभिन्न धर्मों और जातियों के बीच समानता को बढ़ावा देगा।
इस प्रकार, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के स्वतंत्रता दिवस के भाषण और भाजपा घोषणापत्र की दिशा में उठाए गए कदम इस बात की पुष्टि करते हैं कि समान नागरिक संहिता लागू करने का मुद्दा अब एक महत्वपूर्ण और प्राथमिकता वाला एजेंडा है, जिसे सरकार अपने कार्यकाल के दौरान हल करने का प्रयास करेगी।
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