इजराइल-फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत का रुख: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
इजराइल-फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत का रुख न केवल इसकी विदेश नीति के सिद्धांतों को दर्शाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे एक विकसित देश विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मानवीय मुद्दों पर एक संतुलित और विचारशील स्थिति बनाए रखता है। भारत ने शुरू से ही इस संघर्ष को ऐतिहासिक और मानवीय दृष्टिकोण से देखा है, जो आज भी इसके नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करता है।
प्रारंभिक मान्यता
1974 में, भारत को यासर अराफात के नेतृत्व वाले फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (पीएलओ) को फिलिस्तीनी लोगों के एकमात्र और वैध प्रतिनिधि के रूप में मान्यता देने वाला पहला गैर-अरब देश बनने का गौरव प्राप्त हुआ। यह एक महत्वपूर्ण कदम था जिसने फिलिस्तीनी स्वतंत्रता के लिए भारत की राजनीतिक अभिविन्यास और प्रतिबद्धता को प्रदर्शित किया। इस समय से, भारत फिलिस्तीन के अधिकारों और उनके संघर्ष का समर्थन करने की ओर आगे बढ़ा।
फिलिस्तीनी राज्य की मान्यता
1988 में, भारत फिलिस्तीनी राज्य को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक बन गया। यह फिलिस्तीन की पहचान और अधिकारों की अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की मान्यता में एक महत्वपूर्ण मोड़ था। भारत ने हमेशा फिलिस्तीनी लोगों के आत्मनिर्णय के अधिकार का समर्थन किया है, जो उनके लिए एक स्वतंत्र और सुरक्षित राज्य की स्थापना की दिशा में एक कदम है।
प्रतिनिधि कार्यालय
भारत ने 1996 में गाजा में अपना प्रतिनिधि कार्यालय खोला था, जिसे 2003 में रामल्लाह में स्थानांतरित कर दिया गया। यह फिलिस्तीन के प्रति भारत की सक्रिय भूमिका का प्रतीक था। इस कार्यालय के माध्यम से भारत ने फिलिस्तीनी लोगों के साथ सीधा संवाद स्थापित किया और उनकी समस्याओं को समझने की कोशिश की। यह कदम भारत के मानवीय दृष्टिकोण और सहयोग के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
संयुक्त राष्ट्र में सक्रियता
भारत ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कई महत्वपूर्ण प्रस्तावों का समर्थन किया है। अक्टूबर 2003 में भारत ने विभाजन की दीवार बनाने के इजरायल के फैसले का विरोध करने वाले प्रस्ताव का समर्थन किया। इससे भारत की नीति स्पष्ट होती है कि वह फिलिस्तीनियों के अधिकारों की रक्षा के लिए हमेशा तत्पर है।
2011 में भारत ने फिलिस्तीन को यूनेस्को का पूर्ण सदस्य बनाने के पक्ष में मतदान किया। यह कदम न केवल फिलिस्तीनी राष्ट्र की पहचान की मान्यता थी बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत वैश्विक स्तर पर फिलिस्तीन के अधिकारों का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध है।
फिलिस्तीनी झंडे का समर्थन
सितंबर 2015 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र के परिसर में फिलिस्तीनी झंडा लगाने का भी समर्थन किया था। यह न केवल फिलिस्तीनी लोगों के अधिकारों के प्रति भारत की सहानुभूति को दर्शाता है बल्कि यह भी दर्शाता है कि भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिलिस्तीन की वैधता को मान्यता देने के लिए तैयार है।
दो-राष्ट्र सिद्धांत का समर्थन
भारत हमेशा से दो-राष्ट्र सिद्धांत का समर्थक रहा है, जो एक इजरायल राज्य और एक स्वतंत्र फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना की बात करता है। यह सिद्धांत केवल एक राजनीतिक समाधान नहीं है बल्कि दोनों पक्षों के अधिकारों और अस्तित्व की मान्यता पर आधारित एक मानवाधिकार दृष्टिकोण है। भारत का यह दृष्टिकोण न केवल फिलिस्तीनियों के प्रति उसकी सहानुभूति को दर्शाता है बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता और शांति के लिए भी महत्वपूर्ण है।
भारत-इजराइल संबंध
भारत ने 1950 में इजरायल को मान्यता दी थी। हालांकि, भारत ने फिलिस्तीन के अधिकारों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता को कभी नहीं छोड़ा। इसके विपरीत, भारत ने इजरायल के साथ अपने संबंधों को भी मजबूत किया है, खासकर रक्षा और तकनीकी सहयोग के क्षेत्रों में। भारत ने हमेशा यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि वह फिलिस्तीनी मुद्दे पर अपनी नैतिक स्थिति को न छोड़ते हुए अपने द्विपक्षीय संबंधों को बनाए रखे।
निष्कर्ष
इजरायल-फिलिस्तीन मुद्दे पर भारत का रुख एक संतुलित और विचारशील नीति का उदाहरण है। भारत ने हमेशा इजरायल के साथ मजबूत संबंध बनाए रखते हुए फिलिस्तीनी अधिकारों और उनकी आत्मनिर्णय की मांग का समर्थन किया है। यह नीति न केवल भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को मजबूत करती है, बल्कि वैश्विक स्तर पर शांति और स्थिरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है।
भारत का यह दृष्टिकोण दिखाता है कि कैसे एक विकसित देश जटिल अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर प्रतिबद्ध और मानवता-केंद्रित दृष्टिकोण अपना सकता है। इस प्रकार, फिलिस्तीनी मुद्दे पर भारत का रुख केवल एक राजनीतिक निर्णय नहीं है, बल्कि मानवता और सहानुभूति की कहानी है।